व्याकुल मन को शांत कर दे,
चित को कर दे एकाग्र।
योग – माया क्या है ये जीवन?
वक्ष ये केवल वक्ष नहीं हैं,
ये हैं मोक्ष – अमृत – परमानंद का भण्डार।
हिमालय सा उन्नत ये,
सुसुप्त अवस्था में भी रखते हैं,
समुन्द्र सा ज्वार।
अपूर्व – अन्नत इस ब्रह्माण्ड में,
ये वक्ष ही करते हैं जीवन का संचार।
वक्ष ये केवल वक्ष नहीं हैं,
ये हैं वीरों का अभिमान।
परमीत सिंह धुरंधर