सैया माँगता दाल पे आचार हो
छोड़ के घी, दही सजाव हो.
का से कहीं दिल के बात सखी,
छोड़ के आपन लोक-लाज हो.
परमीत सिंह धुरंधर
सैया माँगता दाल पे आचार हो
छोड़ के घी, दही सजाव हो.
का से कहीं दिल के बात सखी,
छोड़ के आपन लोक-लाज हो.
परमीत सिंह धुरंधर