मत पूछ मेरे दिल से समुन्दर का पता,
वो बहता है इसी के हौसलों से यहाँ।
कब तक इंसान बैठेगा खुदा के भरोसे,
कभी -न – कभी हाथों में हल उठाना होगा।
अगर माँ बैठ जाएँ की खुदा पाल देगा बच्चो को,
तो ए मंदिरों, खुदा का नामों-निशान नहीं होगा।
वो बांटते हैं घूम-घूमकर चिट्ठी अपने माफ़ी की,
ये बता रहा है की उनकी औलादों का हुनर क्या होगा।
परमीत सिंह धुरंधर
khubsurat rachna.
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Sukriya Madhusudan jee, hoslaa badhane ke liye.
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Swagat apka.
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