बड़ी तगड़ी बिहारन है,
आँखों में आँखे डाल के,
बुलाती चम्पारण है.
तीखी है, कटीली है,
सुलगने को तैयार,
गोबर की गैंठी है.
बस माचिस लगाने को,
बुलाती अपने आँगन है.
बड़ी तगड़ी बिहारन है,
आँखों में आँखे डाल के,
बुलाती चम्पारण है.
अम्मा उसकी काली,
अब्बा उसके काले।
कालों की खानदान में,
बस एक वो ही गोरी – चीटी,
बंजारन है.
बड़ी तगड़ी बिहारन है,
आँखों में आँखे डाल के,
बुलाती चम्पारण है.
परमीत सिंह धुरंधर