रातों का सफर यूँ तन्हाई में गुजरा,
तुम याद बहुत आये शब् बस गुजारिश में गुजरा।
पलके भी इंतज़ार में इस कदर बिछ गए,
ना तुम आये ना तुम्हारे ख़्वाबों का कारवाँ गुजरा।
जिंदगी को बेबसी का एक एहसास करा गए,
बिना मिले ही खो देने का उपहास करा गए.
सितम कुछ ऐसा की हर पल,
तुम्हे ना पाने के खौफ में गुजरा।
परमीत सिंह धुरंधर