डूबता हैं किनारें वही,
जो नदियों के सहारे हैं.
है समुन्दर यहाँ अपना,
और हम समुन्दर के किनारें हैं.
चुभते हैं काँटे उनको,
जिन्हे फूलों की तमन्ना।
है शीशम यहाँ अपना,
और हम उसकी शाखाएँ हैं.
गर्व किसी का भी हो टूटता है,
खुदा से कितना भी दुआ कर लो.
हैं पिता ही मेरे खुदा यहाँ,
और हम उनके तराने हैं.
परमीत सिंह धुरंधर