वक्ष विशाल
उसपे दो नयन
चलें कुटिल चाल.
उनसे भी जो बच जाए रानी
उनको तेरी कमर दे गहरा घाव.
बलखाते तेरे नितम्बों पे
नागिन सी लहराय
तेरी काली – काली चोटी
कितनो की जवानी जलाय।
उससे भी जो बच जाए रानी,
उसे लूट ले तेरा ये श्रृंगार।
परमीत सिंह धुरंधर