वो अपनी ही जवानी में मगरूर
रात भर मूछों पे ताव देता रहा,
सखी मैं तो चुचाप रही ये सोचकर
की कहीं वक्षों में दांतों का ना दाग देख ले.
परमीत सिंह धुरंधर
वो अपनी ही जवानी में मगरूर
रात भर मूछों पे ताव देता रहा,
सखी मैं तो चुचाप रही ये सोचकर
की कहीं वक्षों में दांतों का ना दाग देख ले.
परमीत सिंह धुरंधर