अगर आप होते पापा,
तो अपनी भी शादी होती।
जिंदगी के ग़मों को समझने वाली,
कोई तो एक घरवाली होती।
अपने नयनों से जो मन को,
बाँध लेती।
और आपके दिल की भी,
शहजादी होती।
रातों में चाँद शिकायतें,
जो करती।
मगर दिन में फिर से,
हिरन सी कुलांचें भी भरती।
अगर आप होते पापा,
तो अपनी भी शादी होती।
सेज पे हमारे भी कोई संगनी होती।
परमीत सिंह धुरंधर