विशाल वक्षों पे
प्रहार करो, वत्स।
ये करुक्षेत्र है तुम्हारा
अब शंखनाद करो, वत्स।
क्या है यहाँ तुम्हारा?
क्या है पराया?
मोह का त्याग कर
परमार्थ करो, वत्स।
विशाल वक्षों पे
प्रहार करो, वत्स।
जो आज है
वो कल मिट जाएगा।
कल जो आएगा
वो तुम्हे मिटा के जाएगा।
अतः कल के फल की चिंता
किये बगैर तीरों का संधान करो, वत्स।
विशाल वक्षों पे
प्रहार करो, वत्स।
नस – नस में उनके एक अग्नि
सी जल जाए.
ह्रदय में उनके पुनः मिलन
की आस रह जाए.
शिव सा कालजयी होकर
काम का संहार करो, वत्स।
विशाल वक्षों पे
प्रहार करो, वत्स।
अद्भुत दृश्य होगा
रक्तरंजित कुरुक्षेत्र होगा।
धरती से आकाश तक
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड गवाह होगा।
हो एक – एक इंच उनका
तुम्हारी गिरफ्त में.
पाने शौर्य का ऐसे विस्तार करो, वत्स।
विशाल वक्षों पे
प्रहार करो, वत्स।
कब सृष्टि रुकी है?
किसी के लिए.
कब वक्त को किसी ने
बाँध लिया है खुद के लिए?
तुम नहीं तो कोई और
बनाएगा उन्हें अपना, जीत कर.
तुम बस एक साधन हो
इस लक्ष्य प्राप्ति का.
प्राप्त मौके को गवा कर
जीवन को ना बेकार करो, वत्स।
विशाल वक्षों पे
प्रहार करो, वत्स।
परमीत सिंह धुरंधर