संवर – संवर कर आईने में
यूँ इठलाया न करो.
दिलों का रिस्ता है
इसे यूँ गंवाया न करो.
ढल जाएगा जब तुम्हारा
ये गोरा बदन.
मुख मोड़ लेगा आइना
भी तुमसे सनम.
तो ऐसे हरजाई से
दिल लगया न करो.
दिलों का रिस्ता है
इसे यूँ गंवाया न करो.
झूलते हैं पंक्षी
जिन शाखाओं पे
सावन में.
छोड़ते नहीं उन्हें कभी भी
पतझड़ में.
तुम यूँ उन्हें जाल में
फंसाया न करो.
दिलों का रिस्ता है
इसे यूँ गंवाया न करो.
परमीत सिंह धुरंधर