माँ
जमाना देखेगा
मेरे रंग को
जब मैं रंग दूंगा
तेरे आँचल को.
अभी तो बहुत पड़ाव
आने बाकी हैं
जहाँ पड़ेंगीं मुझको गालियाँ।
मगर हर पड़ाव पे
जमाना झुकेगा
तेरे चरणों में.
उन्हें धीरज इतना भी नहीं
की मेरे जाने का इंतज़ार कर लें.
वो जिन्हे सिर्फ सोने -जवाहरात
लगाने का शौक है अपने तन से.
वो मुझे गले लगाएं या ना लगाएं
उन्हें एक दिन लगाना होगा
तेरी माटी को अपने तन – मन से.
परमीत सिंह धुरंधर