मैं हूँ एक भारतीय नारी
संस्कारों से भरी
काजल लगाती हूँ आँखों में
और करवा चौथ का व्रत भी रखती हूँ
पर मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ
मैं पतिव्रता तो नहीं हूँ.
पूजती हूँ पति को
अपने परमेश्वर मान कर
उनकी एक खांसी पे जगती हूँ रात भर
लम्बी उम्र को उनके
उपवास भी रखती हूँ
पर मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ
मैं पतिव्रता तो नहीं हूँ.
हसने – खेलने की कोई
उम्र नहीं होती
जवानी में ही सिर्फ
अंगराई – अटखेली नहीं होती
सांझ ढले उनकी नींदे गहरी हो जाती हैं
लेकिन मैं अब भी चाँद बनकर
बादलों में छूप जाती हूँ.
पर मैं प्रतिव्रता नहीं हूँ
मैं पतिव्रता तो नहीं हूँ.
परमीत सिंह धुरंधर