रक्त की बून्द में
तपिश हो प्यास की.
बादल भी ना बरसें
उमड़ कर जिस धरती।
वैसे मरुस्थल में भी
मैं रखूंगा चाहत बस तेरी।
तू सावन बनती रहे
यूँ ही गैरों के आँगन की.
हर पतझड़ के बाद भी
मैं रखूंगा उम्मीदें एक बसंत की.
परमीत सिंह धुरंधर
रक्त की बून्द में
तपिश हो प्यास की.
बादल भी ना बरसें
उमड़ कर जिस धरती।
वैसे मरुस्थल में भी
मैं रखूंगा चाहत बस तेरी।
तू सावन बनती रहे
यूँ ही गैरों के आँगन की.
हर पतझड़ के बाद भी
मैं रखूंगा उम्मीदें एक बसंत की.
परमीत सिंह धुरंधर