मुझे तो मेरी यादे जीने ही नहीं देती
जाने कैसे?
लोग इश्क़ को आग का दरिया कहते हैं.
कब का छूट गए वो दोस्त
कब का भूल चुके मुझे वो लोग
कब का दुनिया की उलझनों में
सभी परिपक्व हो गए.
और मैं वहीं का वहीं
कितना भी आगे जा रहा हूँ,
दिल – दिमाग वहीं लगा रहता है
हर नए महफ़िल में
वो ही पुराने चिरागों को ढूंढता है.
मुझ से तो बिना इश्क़ के भी जिया नहीं जा रहा
और जाने कैसे?
लोगो को इश्क़ में जीना मुश्किल हो जाता है.
परमीत सिंह धुरंधर