दर्द में हर दिल का पैगाम लीजिये
तन्हाई में बस प्रभु का नाम लीजिये।
असंभव क्या, और संभव क्या है?
बिना परवाह के परमार्थ कीजिये।
बूढी माँ हो या बूढी गाय हो
सेवा दोनों की निःस्वार्थ कीजिये।
वीरों की परिभाषा बस एक ये ही
राम सा धीर और धनुष दोनों धारण कीजिये।
योगी कोई नहीं मेरे शिव सा
अमृत छोड़ कर विष का पान कीजिये।
परमीत सिंह धुरंधर