गुलिस्तां में हो-हल्ला बहुत है
की वो मौन हो जाती हैं
एक पत्थर फेंक के.
अंदाजे – हुस्न का शिकवा मत करों
शौहर चुनेगीं वो किसी एक को
शहर के हर चूल्हे पे अपनी रोटी सेंक के.
राजनीति और मोहब्बत के चाल – ढाल एक से
वादे और नजर बदल जाती है
एक रात की भेंट से.
हुस्न के इरादों का अगर पता होता
ताजमहल नहीं बनाते मुमताज के
कब्र की रेत पे.
परमीत सिंह धुरंधर