मुझे पंक्षियों में
गोरैया बहुत पसंद है.
पर मैंने कभी ये जानने
का प्रयास नहीं किया
की गौरेया को क्या पसंद है?
ये मेरा अहम् था
या पौरष का दम्भ
मुझे नहीं मालुम।
पर कुछ था मेरे अंदर
जो कहता था की
गौरेया तो एक स्त्री है
स्त्री का परिचायक है
जो सूचक है
कमजोर और छोटे होने का.
मैं सोचता था
या मेरे अंदर का वो निराकार
अदृश्य परुष कहता था
की मैंने इसे पसंद कर लिया
ये तो इसी में खुश हो जायेगी
ख़ुशी से मर जायेगी।
आज १५ अगस्त पर मैंने जाने क्यों?
सोचा, चलो गौरेया से पूछ लें
की भला वो क्या सोचती है?
खुश है ना वो.
पूछना तो एक बहाना था
अपनी आत्मतृप्ति का
अपने दम्भ की नई सृष्टि का.
खैर, गौरेया से पूछा
कुछ पल की मौन दृष्टि के बाद
गौरेया बोली।
उसे कुछ पसंद करने की आज़ादी कहाँ?
कहाँ पुरुषों में?
पंक्षियों जैसी विविधता
कहाँ पुरुषों में
पंक्षियों जैसी सहनशीलता।
एक आह के साथ
गौरेया ने कहा
शायद सृष्टिकर्ता भी एक
पुरुष रहा होगा।
परमीत सिंह धुरंधर