बादळ कितने बरस – बरस के
भिंगों – भिंगों के रुला गए.
मगर प्रेम फिर वो मिला नहीं तब से
जब से तुम मुख चुरा गए.
वो तारीख फिर आयी है
वो ही दिन और रात वो ही लायी है.
सूरज भी वैसा ही प्रखर
और वही उसकी अरुणाई है.
चाँद मद्धम है
और वैसी ही उसकी अंगराई है.
मगर वो निंदिया नहीं आई तब से
जब से तुम मुख चुरा गए.
बादळ कितने बरस – बरस के
भिंगों – भिंगों के रुला गए.
मगर प्रेम फिर वो मिला नहीं तब से
जब से तुम मुख चुरा गए.
यादों के इस भंवर में
पल – पल हम अब भी उपलाते हैं.
असमंजस और असंभव के बीच
विवस हम नजर आते हैं.
जीवन में अब कुछ नहीं सिवा
अथक परिश्रम के अनंत तक.
मगर पुरस्कार नहीं मिला वैसा तब से
जब से पिता, तुम मुख चुरा गए.
बादळ कितने बरस – बरस के
भिंगों – भिंगों के रुला गए.
मगर प्रेम फिर वो मिला नहीं तब से
जब से तुम मुख चुरा गए.
परमीत सिंह धुरंधर