उनके जिस्म पे जो
ये गहने हैं
पैसों से तो सस्ते
पर पसीने से बड़े महंगे हैं.
यूँ ही नहीं
इठलाती हैं, बलखाती हैं
सखियों के बीच वो
और फिर लौटते ही
मेरे जिस्म पे झूल जाती हैं.
उनकी ये अदा दौलत के आगे
तो बहुत फीकी है
पर शोहरत में बहुत चमकीली है.
परमीत सिंह धुरंधर