उनके जिस्म पे जो
ये गहने हैं
पैसों से तो सस्ते
पर पसीने से बड़े महंगे हैं.
कैसे उतार के रख दे?
वो ये गहने अपने जिस्म से
चमक में थोड़ी फीकी ही सही
मगर इसी चमक के लिए
मेरे बैल दिन – रात बहते हैं.
मेरे बैलों को कोई पशु ना कहे
हैं की उन्ही के बल पे
मेरे घर के चूल्हे जलते हैं
और उनके कर पे वस्त्र
और गहने चमकते हैं.
परमीत सिंह धुरंधर
Waah….dil me bas gaye aapke ye shabd….umda.
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sach men kisanon ke bail evam kutte unke apne pariwaar ki tarah hote hain…..tabhi to kisaan khud bhukhe bhale hi rah jaaye inhen kabhi bhukhe nahi rahne detaa…..kabhi bhi nahi.
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