जब जवानी मिली तो गुनाहों में डाली
जब बुढ़ापा आया तो पैगम्बरों की छानी।
अब जब मिटने के कागार पे हूँ दोस्तों
तो लबों की प्यास बुझाने की ठानी।
इसे मत समझों अय्यासी मेरी तुम
नादान मैंने अब जाके जीवन, जीने की चाही।
परमीत सिंह धुरंधर
जब जवानी मिली तो गुनाहों में डाली
जब बुढ़ापा आया तो पैगम्बरों की छानी।
अब जब मिटने के कागार पे हूँ दोस्तों
तो लबों की प्यास बुझाने की ठानी।
इसे मत समझों अय्यासी मेरी तुम
नादान मैंने अब जाके जीवन, जीने की चाही।
परमीत सिंह धुरंधर