दर्द उनका अधूरा सा है
जिंदगी में हम जो मुस्कराने लगे.
मेरी खामोशी को कमजोरी समझकर
वो महफ़िल थे अपनी सजाने लगे.
उस चाँद पे है मायूसी के बादल
जब फकीरी में भी हम गुनगुनाने लगे.
सवरना उनका अधूरा सा है
गजरा फिर जुल्फों में हम लगाने लगे.
परमीत सिंह धुरंधर