शौक इतना क्यों रखते हों?
जब संभाल नहीं पाते हो कमर को.
नजर से ही छू लिया करो
क्यों बे – बजह कपकपाते हो उँगलियों को.
उम्र भर का साथ
जब मिटा ना सका तुम्हारी प्यास को.
बिना दांतों के क्यों व्यर्थ परिश्रम करते हो.
परमीत सिंह धुरंधर
शौक इतना क्यों रखते हों?
जब संभाल नहीं पाते हो कमर को.
नजर से ही छू लिया करो
क्यों बे – बजह कपकपाते हो उँगलियों को.
उम्र भर का साथ
जब मिटा ना सका तुम्हारी प्यास को.
बिना दांतों के क्यों व्यर्थ परिश्रम करते हो.
परमीत सिंह धुरंधर