ए दुश्मन तेरी आँखे मुझे पसंद बहुत हैं
अपने मुखड़े से ये घूँघट निकाल दे.
सुना है तेरी लबों को लहू की चाहत बहुत है
तू चाहे तो मेरे जिस्म से मेरा दिल निकाल ले.
सुना है की तेरे चर्चा में जिक्र आ जाता है मेरा
तू चाहे तो मेरी गर्दन अपने दर पे बाँध ले.
तू बस गया है सरहदे – जमीन से जाकर दूर
तू चाहे तो मेरे जमीन पे और कहर बरपा ले.
परमीत सिंह धुरंधर