तेरे अधरों पे मेरा जीवन बस रहा है
और शर्म से तुम दूर जा रही हो.
तू भी जानती है ये सच की
स्वयं तुम्हारी धड़कन ये कह रही है.
परमीत सिंह धुरंधर
तेरे अधरों पे मेरा जीवन बस रहा है
और शर्म से तुम दूर जा रही हो.
तू भी जानती है ये सच की
स्वयं तुम्हारी धड़कन ये कह रही है.
परमीत सिंह धुरंधर