रौशन करती हैं अँधेरे में जिंदगी को तेरी आँखे
कुदरत को जाने क्या मिला बना के तेरी आँखे?
कैसे गुजर जाए कोई पनघट से पी कर तेरी हाँथों से?
सैकड़ों सवाल पूछती हैं ह्रदय को रोक कर तेरी आँखें।
परमीत सिंह धुरंधर
रौशन करती हैं अँधेरे में जिंदगी को तेरी आँखे
कुदरत को जाने क्या मिला बना के तेरी आँखे?
कैसे गुजर जाए कोई पनघट से पी कर तेरी हाँथों से?
सैकड़ों सवाल पूछती हैं ह्रदय को रोक कर तेरी आँखें।
परमीत सिंह धुरंधर