ए समंदर थोड़ा शांत रहा कर
तुझे मिला है स्वयं प्रभु का संग
तेरे सीने पे है उनके पदचाप
जिन्हे कहता है जमाना मर्यादा परुषोतम।
जिसके चरणों के घुल से अहिल्या तरी
जिसके लिए व्याकुल रहती थी बूढी शबरी बड़ी
तेरे दर पे ही, बिना एक क्षण गवाए
जिसने अर्पित किये थे माँ शक्ति को अपने नयन.
ए समंदर थोड़ा शांत रहा कर
तेरे दर पे स्वयं चल कर आया था वो
तुम्हारी पुत्री ने स्वयं किया था
समस्त जगत का त्याग कर जिसका पाणिग्रहण।
जिसके धीर के समक्ष हिमालय भी सूक्ष्म
जिसके एक दर्शन को
ऋषि – मुनि करते हैं तप अनंत
जिसने पिता के लिए किया वन का गमन.
ए समंदर थोड़ा शांत रहा कर
तुझसे राहे मांग रहा था वो हाथ जोड़कर
जिसने रचा है इस समस्त जगत को
जिसे समस्त जगत कहता है नारायण।
परमीत सिंह धुरंधर