हारे ऐसे की जमाने ने मज़ाक बना दिया
फिर जीते भी ऐसे की जमाना मज़ाक बन गया.
मगर इस हार – जीत में दोस्तों
हाथों से कुछ फिसल गया.
यह सही है की वक्त भर देता है जख्मों को
मगर वक्त ने ही जाने क्यों जख्मों को हरा छोड़ दिया?
हमने ख्वाब सजाएं जिन हाथों को थामकर
उन्ही हाथों ने, उन ख़्वाबों को हमसे चुरा लिया।
इश्क़ जब भी बेपनाह हुआ है
जमाने से पहले हुस्न ने उसे ठोकर लगा दिया।
चंद मुलाकातों का शौक मोहब्बत नहीं
क्या समझेंगे वो जिन्होंने हर रात नया सेज सजा लिया?
तड़प क्या होती है दिल की उस जिस्म से पूछो?
जिसकी मोहब्बत को किसी और ने अपनी दुल्हन बना लिया।
वो चढ़ गयी डोली बिना एक पल भी सोचे
जाने हुस्न ने कैसे खुद को इतना कठोर बना लिया?
परमीत सिंह धुरंधर