है समंदर खामोश अभी की
तन्हाई बहुत है
उम्मीदों पे भारी शहनाई बहुत है.
ये सच है,
जमाने की प्यास मिटाती है दरिया
पर दरिया के यौवन पे
समंदर का बलिदान भारी बहुत है.
परमीत सिंह धुरंधर
है समंदर खामोश अभी की
तन्हाई बहुत है
उम्मीदों पे भारी शहनाई बहुत है.
ये सच है,
जमाने की प्यास मिटाती है दरिया
पर दरिया के यौवन पे
समंदर का बलिदान भारी बहुत है.
परमीत सिंह धुरंधर