अब शौक है अधरों का मुझको
निगाहों से मोहब्बत, वो बचपन में था.
तुम भी सम्भालों अपना दुप्पटा जरा
इन्हे उड़ाने का शौक तो हवाओं को था.
क्यों बोझिल हो जाती हैं?
शर्म से पलके पलभर में.
जिन्हें जमाने से लड़ाने का शौक तुमको था.
और अब तक बैठा है कुंवारा Crassa
वफाए – मोहब्बत, तुमसे जमाने को था.
परमीत सिंह धुरंधर