जिंदगी को जीने का
अपना – अपना विचार है.
जब बंट रहा था अमृत
तो शिव विष धारण कर गए.
सोने की लंका का त्याग कर
कैलास को पावन कर गए.
भगीरथ के एक पुकार पर
प्रबल-प्रचंड गंगा को
मस्तक पर शिरोधार्य कर गए.
जब बंट रहा था अमृत
तो शिव विष धारण कर गए.
गर्व का त्याग कर
कृष्णा सारथि बने कुरुक्षेत्र में.
सब सुखों का श्रीराम
परित्याग कर गए.
हिन्द की इसी धरती पे
जब रचा गया चक्रव्यूह
तो वीरता के अम्बर को
अभिमन्यु दिव्यमान कर गए.
जब बंट रहा था अमृत
तो शिव विष धारण कर गए.
परमीत सिंह धुरंधर