साधू बनकर भी मैं
त्याग नहीं कर पाया मोह को.
घर त्यागा, माँ को त्यागा
त्याग नहीं पाया बंधन को.
दो नयना अब भी हर लेते हैं
चैन मेरे मन का.
सर्वस्व का त्याग कर के भी शिव
मैं बाँध ना पाया अपने मन को.
परमीत सिंह धुरंधर
साधू बनकर भी मैं
त्याग नहीं कर पाया मोह को.
घर त्यागा, माँ को त्यागा
त्याग नहीं पाया बंधन को.
दो नयना अब भी हर लेते हैं
चैन मेरे मन का.
सर्वस्व का त्याग कर के भी शिव
मैं बाँध ना पाया अपने मन को.
परमीत सिंह धुरंधर
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