अजनबियों की दौलत मैं उठाता नहीं
और अपनों से मैं कुछ चुराता नहीं।
मेरा खुदा भी कहता है की Crassa
इस सांचे से फिर ऐसा कोई ढलता नहीं।
माना की विफल बहुत है जीवन में
मगर मयखाने में मंदिर, मंदिर में मयखाना
यूँ तो कोई और करता नहीं।
ईसा में राम, राम में ईसा
ऐसे तो कोई टूटा आशिक़ देखता नहीं।
परमीत सिंह धुरंधर