ए मौसम देख ज़रा
क्यों मेरा रंग है खिला – खिला?
ऐसी चढ़ी जवानी मुझपे
रखती हूँ मैं चोली का बटन खुला – खुला।
कितने भौरें तड़प रहें?
कितने भौरें हैं तरस रहें?
ए मौसम देख ज़रा
मेरे वक्षों पे है बसंत नया – नया.
परमीत सिंह धुरंधर
ए मौसम देख ज़रा
क्यों मेरा रंग है खिला – खिला?
ऐसी चढ़ी जवानी मुझपे
रखती हूँ मैं चोली का बटन खुला – खुला।
कितने भौरें तड़प रहें?
कितने भौरें हैं तरस रहें?
ए मौसम देख ज़रा
मेरे वक्षों पे है बसंत नया – नया.
परमीत सिंह धुरंधर