मदिरालय की अप्सराओं में


पनघट पे जो प्रेम मिला, वो कहाँ है इन मयखानों में?
सारा मेरा सागर सोंख गयी वो रात की पायजेबों में.

वो घूँघट से झाँकती, मुस्काती आँचल के ओट से
वो लचक कमर की अब कहाँ इन मदिरालय की अप्सराओं में.

परमीत सिंह धुरंधर

Leave a comment