तीक्ष्ण नैनों के बाण चलाकर
मृग-लोचन से मदिरा छलकाकर
वो तरुणी बोली, “हे पथिक, तुम किस पथ के गामी हो?”
नितम्बों पे वेणी लहराकर
वक्षों पे लटों को बिखराकर
वो तरुणी बोली, “हे पथिक, तुम किस पथ के गामी हो?”
शर्म-हया-लज्जा में अटखेली घोलकर
नवयौवन के रस में मादक पलकों के पट खोलकर
वो तरुणी बोली, “हे पथिक, तुम किस पथ के गामी हो?”
जोबन के दंश को सहकर
सुडोल अंगों को आँचल में सहेजकर
वो तरुणी बोली, “हे पथिक, तुम किस पथ के गामी हो?”
ह्रदय में मिलान की तस्वीर सजोंकर
विरह में प्रिय के जलकर
वो तरुणी बोली, “हे पथिक, तुम किस पथ के गामी हो?”
मेरे ह्रदय की गति को बढ़ाकर
वो तरुणी अपनी संचित मुस्कान बिखेरकर
बोली, “हे पथिक, किस पथ के गामी हो?”
परमीत सिंह धुरंधर