सरहदों को पता ही न चला
सितमगर, सितम कर गया.
मैंने तो कस कर बाँधी थी चोली
हरजाई जाने कैसे फिर भी रंग डाल गया.
सखी, अब ना खेलने जाउंगी
होली छपरा के धुरंधर से.
निर्मोही तन ही नहीं
मेरा मन भी रंग गया.
परमीत सिंह धुरंधर
सरहदों को पता ही न चला
सितमगर, सितम कर गया.
मैंने तो कस कर बाँधी थी चोली
हरजाई जाने कैसे फिर भी रंग डाल गया.
सखी, अब ना खेलने जाउंगी
होली छपरा के धुरंधर से.
निर्मोही तन ही नहीं
मेरा मन भी रंग गया.
परमीत सिंह धुरंधर