दास्ताने – जिंदगी तो सबने लिखी है
मैं पढ़ने बैठा हूँ दास्ताने – जिंदगी।
शौक समंदर का रखता हूँ
इस शौक ने कर दिया तन्हा जिंदगी।
उलझनों में उलझ के जो थम जाते हैं
कब कोई उनसे पूछता है फिर हाले – जिंदगी?
उनकी निगाहों को देख समझ गया था
ख़ाक के सिवा कुछ नहीं मोहब्बत में जिंदगी।
दुवाओं का असर है या कर्म का फल है
बेगानों की बस्ती में अब तक टिकी है जिंदगी।
परमीत सिंह धुरंधर