इंसान तेरे क़दमों की बस यही एक कहानी
रुक जाएँ तो, कौन साथ इनका मांगता?
धुप में जो रूप खिले, ऐसा यौवन है वो
शीत के चाँद को कौन आँगन से है देखता?
परमीत सिंह धुरंधर
इंसान तेरे क़दमों की बस यही एक कहानी
रुक जाएँ तो, कौन साथ इनका मांगता?
धुप में जो रूप खिले, ऐसा यौवन है वो
शीत के चाँद को कौन आँगन से है देखता?
परमीत सिंह धुरंधर