शहर को क्या पता है किस्मतें -द्वन्द का?
मेरे दिल से पूछों जिसे नशा है तुम्हारे अंग – अंग का.
उलझनों में बांध के क्या मोहब्बत करोगे?
ख्वाइस तुम्हे दौलत की और मुझे तुम्हारे वक्षों का.
राहें बदल – बदल कर कौन सी मंजिल पा लोगे?
स्थिर होने पे बुद्ध के, द्वार खुला था ज्ञान का.
परमीत सिंह धुरंधर