जितना भी प्यासा हूँ मैं
ये तेरी नजरों का साया है.
लड़ता हूँ पेंच मैं भी बहुत
मगर ये तेरा मोहल्ला है.
क्या संभालोगे खुद को तुम
जवानी में बहुत नशा है.
इस उम्र में कब कहाँ किसी ने?
कोई घर बसाया है.
परमीत सिंह धुरंधर
जितना भी प्यासा हूँ मैं
ये तेरी नजरों का साया है.
लड़ता हूँ पेंच मैं भी बहुत
मगर ये तेरा मोहल्ला है.
क्या संभालोगे खुद को तुम
जवानी में बहुत नशा है.
इस उम्र में कब कहाँ किसी ने?
कोई घर बसाया है.
परमीत सिंह धुरंधर