रंग- तरंग आके संग मेरे बैठ गयी
एक हवा भी कहीं से, मेरी जुल्फों में बंध गयी.
दरिया ने माँगा है पाँव मेरे चूमने को
सागर ने सन्देश भेजा है ख्वाब मेरे पालने को.
और मेरे वक्षों पे चाँद की नजर गड़ गयी.
भौरें सजा रहे हैं पराग ला – लाकर मेरे अधरों को
और कलियाँ खिल – खिलकर मेरे अंगों पे गिर रही.
दिन मांगता है चुम्बन मेरे गालों का
और मेरे नयनों में स्वयं निशा है उतर गयी.
ना दरिया को पाँव दूंगी, ना सागर को ख्वाब
अल्हड मेरी जवानी, करुँगी Crassa पे कुर्बान।
मेरा रसिया है बस छपरा का धुरंधर
जीवन संग उसके गुजार दूंगी
नून – रोटी खाउंगीं, पर न उसको दगा दूंगी।
परमीत सिंह धुरंधर