ए जोगी तनी हमरो से रचाई ना व्याह
अंग-अंग खिल के जोहे राउर राह.
छोड़ दी हिमालय के तराई में तरपाल
बिछा के खटिया आईं
रउरा के खिलाई ताजा – ताजा पकवान।
अभी संजोग बा, अभी उम्र बा
ढल जाए जवानी तो रहें पच्छ्तात
फेन ना आई इ छपरा के पोठिया रउरा हाथ.
रोजे पठावत बारन बायना छपरा के धुरंधर Crassa
को छोड़ के जोगी तहरा के,
चढ़ जाइ हम डोली अब Crassa के साथ.
परमीत सिंह धुरंधर