तेरे नयन है मेरे सघन वन
जिसमे विचरण करता है मेरा मन.
तू ना जाने क्या ढूंढती है जग में?
जब तुम्हारे लिए ही है मेरा उपवन।
काले – काले मेघों को
बाँध के अपनी जुल्फों में
फिर भी प्यासी -प्यासी हो
जाने किसकी चितवन में?
परमीत सिंह धुरंधर
तेरे नयन है मेरे सघन वन
जिसमे विचरण करता है मेरा मन.
तू ना जाने क्या ढूंढती है जग में?
जब तुम्हारे लिए ही है मेरा उपवन।
काले – काले मेघों को
बाँध के अपनी जुल्फों में
फिर भी प्यासी -प्यासी हो
जाने किसकी चितवन में?
परमीत सिंह धुरंधर