अंग-अंग पे हसीना तेरे अत्याचार कर दूंगा
एक रात तुझे ऐसे बेक़रार कर दूंगा।
तू तड़प – तड़प के गिरेगी मेरी बाहों में
तेरे अंग-अंग को ऐसे आज़ाद कर दूंगा।
तेरा जोबन पिघल उठेगा मोम सा मेरी साँसों से
मैं तीली बनकर तुझमे ऐसी आग लगा दूंगा।
परमीत सिंह धुरंधर