उड़ता है परिंदा
आसमा तेरी चाहत में
पर पाना ही तुझको
उसको ऐसा तो शौक नहीं।
खिलता हूँ लाखों पुष्प
रोज अपने बाग़ में
पर तोड़कर उनको माला पहनना
ऐसा मेरा तो शौक नहीं।
सागर सा तन्हा हूँ
पर मस्त हूँ अपने रंग में
नदिया का मीठापन चुराना
ऐसा मेरा तो शौक नहीं।
परमीत सिंह धुरंधर