किस देश में है मेरे बाबुल का गावं रे
मैं भूल गयी सैया तूने मुझपे ऐसे डाला हाथ रे.
एक ररत में सब रिश्ता तुमने बदल दिया
निंद्रा से खुली पलकों को तुम बहाने लगे हो पीया।
दिन – रात अब नैना जोहे बस तेरी ही राह रे
मैं भूल गयी हर राह तूने मुझपे ऐसे डाला हाथ रे.
परमीत सिंह धुरंधर