सैया छिलह तारान आज कल दही पर के छाली
करके हमके लरकोरी, खुद भइल बारन मवाली।
खेता – खेता, गाछी – गाछी, सुस्ता तारान खटिया डाल के
और यहाँ सुलग ता रात – रात भर हामार छाती।
डर ता जियरा की कहीं नवे महीना में
लेके मत आ जाइ अंगना में दूसर घरवाली।
परमीत सिंह धुरंधर