मैं चाँद में
तुम्हारा रूप देखता हूँ.
तुम धुप में
मेरा बदन देखती हो.
मैं पसीने से भींगा तर-बतर
और तुम चन्दन सी
मुझपर बिखर जाती हो.
कैसे खुश हो तुम
बाबुल का महल छोड़ कर?
किसान की इस झोपडी में
ऐसा भी तुम क्या पाती हो?
परमीत सिंह धुरंधर
मैं चाँद में
तुम्हारा रूप देखता हूँ.
तुम धुप में
मेरा बदन देखती हो.
मैं पसीने से भींगा तर-बतर
और तुम चन्दन सी
मुझपर बिखर जाती हो.
कैसे खुश हो तुम
बाबुल का महल छोड़ कर?
किसान की इस झोपडी में
ऐसा भी तुम क्या पाती हो?
परमीत सिंह धुरंधर